Media Production - New Delhi, Delhi, India
स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद 14 जनवरी, 1948 को मकर संक्राति के पावन पर्व पर अपने आवरण पृष्ठ पर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से शंखनाद के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व में 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक का अवतरण स्वाधीन भारत में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रेरक आदशोंर् एवं राष्ट्रीय लक्ष्यों का स्मरण दिलाते रहने के संकल्प का उद्घोष ही था। अटल जी के बाद 'पाञ्चजन्य' के सम्पादक पद को सुशोभित करने वालों की सूची में सर्वश्री राजीवलोचन अग्निहोत्री, ज्ञानेन्द्र सक्सेना, गिरीश चन्द्र मिश्र, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, तिलक सिंह परमार, यादव राव देशमुख, वचनेश त्रिपाठी, केवल रतन मलकानी, देवेन्द्र स्वरूप, दीनानाथ मिश्र, भानुप्रताप शुक्ल, रामशंकर अग्निहोत्री, प्रबाल मैत्र, तरुण विजय, बल्देव भाई शर्मा और हितेश शंकर जैसे नाम आते हैं। नाम बदले होंगे पर 'पाञ्चजन्य' की निष्ठा और स्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं आया, वे अविचल रहे।किन्तु एक ऐसा नाम है जो इस सूची में कहीं नहीं है, परन्तु वह इस सूची के प्रत्येक नाम का प्रेरणा-स्रोत कहा जा सकता है जिसने सम्पादक के रूप में अपना नाम कभी नहीं छपवाया, किन्तु जिसकी कल्पना में से 'पाञ्चजन्य' का जन्म हुआ, वह नाम है पं. दीनदयाल उपाध्याय। पाञ्चजन्य के जन्म का एक माह भी पूरा नहीं हुआ था कि गांधी हत्या से प्रभावित वातावरण का लाभ उठाकर सरकार ने फरवरी, 1948 में 'पाञ्चजन्य' का गला घोंटने की कोशिश की। उसके सम्पादक, प्रकाशक और मुद्रक को जेल में बंद कर दिया, उसके कार्यालय पर ताला ठोंक दिया। जुलाई, 1949 में यह ताला हटते ही 'पाञ्चजन्य' का शंखनाद पूर्ववत् गूंज उठा। 1959 में कम्युनिस्ट चीन द्वारा तिब्बत की स्वाधीनता के अपहरण और दलाई लामा के निष्कासन, 1962 में भारत पर चीन के हमले के लिए नेहरू जी की असफल विदेश नीति एवं रक्षा नीति का दोष, 1972 में भारतीय सेनाओं की विजय को शिमला समझौते की मेज पर गंवा देने के विरुद्ध पांचजन्य सदा मुखर रहा। जून, 1975 में इंदिरा गांधी ने आपात स्थिति की घोषणा करके भारतीय लोकतंत्र का गला घोंटने की कोशिश की और मार्च, 1977 में आपातकाल की समाप्ति पर ही 'पाञ्चजन्य' पुन: अपनी ध्येययात्रा आरंभ कर सका। 'पाञ्चजन्य' की यात्रा साधनों के अभाव एवं सरकारी प्रकोपों के विरुद्घ राष्ट्रीय चेतना की जिजीविषा और संघर्ष की प्रेरणादायी गाथा है।
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